नगाड़े की पोल a moral story
नगाड़े की पोल
एक बार दो राजाओं की सेनाओं के मध्य घमासान युद्द हुआ । यह युद्ध जंगल के पास एक मैदान में हुआ । व कुछ दिन बाद समाप्त हो गया तथा दोनों राजाओं के मध्य शांति संधि हो गई । और दोनों राज्य और उनकी सेनाएं वापस अपने राज्य लौट गई। उनका रास्ता जंगल में से ही होकर गुजरता था । अतः उस जंगल में उनकी कुछ चीजे छूट गई थी। उस युद्ध की आवाज पूरे जंगल में गूँजा करती थी । एक दिन वहाँ डरा सहमा एक सियार
दबे पाँव
आया उसे जोर जोर से आवाज या रही थी । वह उस आवाज की तरफ धीरे धीरे जाने लगा।
थोड़ी
दूर जाने पर उसे एक नगाड़ा दिखई दिया ,उस पर आस पास के पेड़ों की टहनियाँ तेज हवा के कारण जब नगाड़े पर
पड़ती तो तेज आवाज होती और वही आवाज जंगल में दूर तक सुनाई देती। जब सोमरु सियार ने
यह देखा तो वह भी दबे पाँव उसके पास पहुँचा और
धीरे से उस नगाड़े पर अपना हाथ मारा जिससे जोर से आवाज हुई । सोमरु ने सोच
यह तो कोई सीधा साधा जानवर है। और काफी मोटा भी है। इसलिए इसमें बहुत सारा
मांस,चर्बी व खून भी होगा । इसे खाने से
मेरी बहुत दिनों तक भूख भी मिट जाएगी । तो
चलो आज इसको ही मारकर खाया जाए । यह सोचकर उसने अपने दांत उस नगाड़े प्रलगे
चमड़े पर जोर से गड़ाए । लेकिन चमड़ा बहुत कठोर था,जिससे सोमरु के दांत टूट गए ।
किन्तु उस चमड़े में एक छेद हो गया । जिसके अंदर से सियार ने झांक कर देखा तो पता
चल कि अंदर से तो वह नगाड़ा पोला था। उस
में मांस ,खून ,आदि कुछ भी नहीं था।
शिक्षा
–केवल शब्द मात्र से डरना सही नहीं है। और न कुछ सुन लेने मात्र से किसी के प्रति
कोई धारणा बना लेनी चाहिए ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें