सोचो फिर करो(moral story)
सोचो फिर करो
किसी जंगल
मे अग्निमुखम नाम का एक शेर रहता था । उसकी एक मंत्री परिषद व अनेक नौकर चाकर थे ।
जैसे कि चीता । कौआ , सियार , भेड़िया। लोमड़ी ,आदि। एक दिन एक ऊँट कही से घूमता हुआ उस जंगल में आ गया ।
शेर ने एसा जानवर कभी नहीं देखा था ।
उसने अपने मंत्री सियार से पूछा कि
इतना लंबा । ऊँचा सा ये जानवर कौन
है?और अगर तुम्हें नहीं पता तो उससे
जाकर उसका परिचय पूछो। सियार ऊँट
के पास गया और उससे पूछा- कि भाई
तुम कौन हो और कहाँ से आए हो?
ऊँट
बोला -भोलू है मैं एक ऊँट हूँ और घूमता हुआ इधर आ गया हूँ ।
अग्निमुख
भी उसकी यह बात सुन रहा था । उसे ऊँट बहुत पसंद आया । शेर बोल की भोलू जी तुम यहाँ
आए हो तो अब तुम हमारे मेहमान हुए अतः कुछ दिन हमारा आतिथ्य स्वीकार करो। और कुछ
दिन यहाँ आनंद से रहो ।
टिटहरी का जोडा (a moral story )
पहले
तो ऊँट ने सोचा फिर उसने शेर का आतिथ्य स्वीकार कर लिया । एवं मजे से उनके पास रहने
लगा ।
कुछ
दिन बाद अग्निमुख की एक बड़े से हाथी के साथ झड़प हो गई । जिसमे शेर घायल हो गया ।
घायल होने से वह शिकार करने लायक नहीं रहा । एक दो दिन तो इसे ही निकल गए किन्तु
अब वह भूख से व्याकुल होने लगा । साथ ही उस पर आश्रित उसके नौकर चाकर व मंत्री
जैसे कौआ , सियार आदि भी भूख से तड़पने लगे
। क्योंकि वह तो शेर के किए हुए शिकार पर ही आश्रित थे ।
वह
पूरा जंगल छान आए पर उन्हे कुछ नहीं मिला ।वे आपस में बात करने लगे कि इसे तो हम
तड़प तड़प कर मर जाएंगे । हमे कुछ करना चाहिए । क्यों न हम राजा से कहें कि वह इस ऊँट का ही शिकार कर ले जिससे
राजा जी का और हम सब का भी पेट भर जाएगा ।
इस पर दूसरा बोला कि अगर राजा जी नहीं माने तो क्या करेंगे ? पहला बोला आर
तब की तब देखेंगे ।
यह
सोच सब राजा के पास गए और नमस्कार करते हुए बोले राजा जी आप तो बहुत ही कमजोर लग
रहे है । एसा कब तक चलेगा ? शेर बोला मैं कर भी क्या सकता हूँ अभी तो मैं मजबूर
हूँ।
सियार
बोला हम भी सारा जंगल छान आए पर कहीं भी कुछ नहीं मिला । मेरे पास इस समस्या का एक
समाधान है आप कहें तो मैं बताऊ । शेर ने
कहा ठीक है बताओ । फिर वह बोल कि हम इस भोलू ऊँट को अपना शिकार आसानी से बना सकते
हैं ।
यह
सुनकर राजा को क्रोध आ गया । वह बोला कि
तुमने इस तरह की बात करने की हिम्मत भी कैसे की ।क्या तुम लोगों को पता नहीं कि वह
हमारा मेहमान है और मेहमान भगवान के बराबर होता है। एसा नहीं हो सकता ।
इस
पर कौआ बोला कि महाराज हम आपको उसका शिकार करने के लिए नहीं कह रहे है किन्तु यदि
वह स्वयं ही खुद को आप को सौंप दे और आप मुझे खा लो तब आप क्या कहेंगे । राजा ने
कहा की हाँ तब ठीक है ।
शेर
से पूछने के बाद अब वे सब ऊँट के पास गए और उससे बोले कि हमारा राजा और आश्रय दाता
आज बहुत मुसीबत में है क्योंकि वह घायल है और शिकार नहीं कर सकता हम से अब उनकी यह
हालत देखी नहीं जाती । अतः हमें कुछ करना चाहिए ।
अब
सियार बोला कि मैं तो राजा के पास जाऊंगा और कहूँगा कि वह मुझे खाकर अपनी भूख शांत
कर ले । इस पर कौआ बोला कि मैं भी यही सोच रहा हूँ । तो भेड़िये ने भी उसकी हाँ में
हाँ मिलाई। और ऊँट की तरफ मुंह करके पूछा कि कहो भाई तुम्हारा क्या विचार है। क्या
हम सही सोच रहे है ?
ऊँट
ने मन ही मन सोचा कि मुझे इनकी हाँ में हाँ मिलने में क्या जाता है। यह सोच कर वह
बोल की हाँ आप लोग सही कह रहेहें । अतः मैं भी आपके साथ चलता हूँ । एसा विचार कर
सब की सब शेर के पास चल दिए ।
राजा
के पास पहुंचकर सियार बोला की महाराज मैं आपका सेवक हूँ । मुझसे आपकी यह हालत देखी
नहीं जाती । आप कृपया करके मुझे अपना भोजन बनाए । तथा अपनी भूख शांत करें । राजा
ने कहा नहीं मैं एसा नहीं कर सकता ।
अब कौआ बोला राजा जी आप मेरा सेवन करें और अपनी
भूख शांत करें । मैं अपने को धन्य समझूँगा । शेर बोल नहीं तुम तो मेरे सेवक हो और
तुम इतने छोटे हो की तुम को कहकर तो मेरी भूक शांत होने का सवाल ही नहीं उठता ।
अब
भेड़िये की बारी आई , उसने भी अग्निमुख से से विनती की कि वह उसे कहा ले लेकिन शेर
ने उसे भी मना कर दिया । ऊँट यह सब देख रहा था । उन सब की नकल करते हुए वह भी शेर
के पास गया और बोला आप के मुझ पर बहुत अहसान है आप ने मेरी इतनी आव भगत की है अब
चूंकि आप मुसीबत में है तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं भी आपकी कुछ सेवा करूँ ।
अतः मैं चाहता हूँ कि आप मेजहे खाए और अपनी तृष्णा को शांत करें ।
उसका
इतना कहना था कि शेर के एक इशारे पर उसके सेवक और स्वयं शेर उस भोलू ऊँट पर झपट
पड़े । और मिनटों में उसका मांस चीर कर उसे मार डाला और उसे खा गए ।
शिक्षा
–
हमें
किसी की नकल नहीं करनी चाहिए। हर काम सोच विचार कर करना चाहिए । न की बिना सोचे
समझे दूसरों की नकल करना चाहिए । अन्यथा मुसीबत में पड़ सकते है और पछताना पड़ेगा।
दूसरी
बात कि अतिथि धर्म बहुत ही मुश्किल होता है और अगर आप किसी को आश्रय देते हैं तो
अंत तक उसकी रक्षा करनी चाहिए। . .
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें