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sangthan me shakti -a moral story in hindi

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 sangthan me shakti -a moral story in hindi संगठन में शक्ति किसी जंगल में बरगद का बहुत बड़ा पेड़ था । उस पेड़ पर बहुत से पशु पक्षी रहते थे । वहाँ उस पेड़ की एक शाखा पर चिड़ा -चिड़ी का जोड़ा घोंसला बना कर   रहता था । एक दो दिन पहले ही चिड़ी ने अपने घोंसले में तीन अंडे दिए थे । Add caption उससे चिड़ा- चिड़ी   दोनों ही बहुत खुश थे । वे दोनों उन अंडों में से बच्चे निकलने का इंतजार कर रहे थे । एक दिन वहाँ एक मतवाला हाथी आया और आराम करने के लिए बैठ गया । थोड़ी देर बाद आराम करके जब वो जाने लगा तो मस्ती में आकर उसने उस पेड़ की डाली पकड़कर जोर से घुमाई तो उसकी वह डाली टूट गई ।   और ये वही डाली थी जिस पर चिड़ी का घोंसला था व घोंसके में उसके अंडे रखे थे । डाली के टूट कर गिरने से घोंसला भी गिर गया जिससे अंडे   फूट गए । अंडों के फूट जाने से चिड़ा -चिड़ी बहुत दुखी हुए खासकर चिड़ी । वह तो जोर जोर से रोने लगी। उसका रोना सुनकर कटफ़ोड़वा वहाँ आया और चिडी-चिड़ी को धेर्य बांधने लगा । पर चिड़ी थी की चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी । रोते हुए वह कटफ़ोड़वे से बोली कि अगर तू हमारा सच्चा मित्र है तो हाथी से बदला   लेने में

मूर्ख कछुआ (a moral story in hindi)

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 मूर्ख कछुआ (a moral story in hindi) मूर्ख कछुआ एक तालाब में एक कछुआ रहता था। उसका नाम कुकुट था । इसी तालाब के पास ही  दो हंस रहते थे , वह रोज तालाब पर आते थे । उनका नाम अटक ,पटक था ।  वह  दोनों कुकुट के दोस्त थे । उन तीनों में बहुत पक्की मित्रता थी । वे साथ में खेलते ,  खाते और शाम होने पर बैठ कर खूब सारी बातें करते । गर्मियों का मौसम जा चुका था  लेकिन अभी तक बारिश नहीं हुई थी इसलिए तालाब का पानी भी सूख कर कम होने  लगा था । यह देखकर कछुए को चिंता होने लगी । उसे चिंतित देख अटक , पटक ने ने उससे  पूछा कि दोस्त क्या बात है तुम बड़े चिंतित दिखाई दे रहे हो ? कछुआ बोला – हाँ मित्र ,सही है परेशान तो में बहुत हूँ । अटक बोला -हमें बताओ क्या बात है ? क्यों परेशान हो ? और हम तुम्हारी क्या मदद  कर सकते हैं ? इस पर कछुआ बोल कि मित्र बारिश न होने के कारण इस तालाब का पानी धीरे धीरे  कम होता जा रहा है और अगर एसा ही चलता रहा तो एक दिन यह तालाब पूरी तरह  सूख जाएगा । तो मेरा तो मरण हो जाएगा । अब मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ  रहा । तुम लोग ही इस समस्या का कोई समाधान निकलो और मेरी मदद करो । उन

स्वार्थी गीदड़

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  स्वार्थी गीदड़ एक घना जंगल था । उसमें बजरदंत नाम का एक शेर रहता था । उसके संग उसके दो सेवक छुटटन गीदड़ और मुटन सियार रहते थे । दोनों सेवक सदेव उसी के साथ रहते थे । एक दिन शेर शिकार करने निकाला तथा उसने एक ऊंटनी का शिकार किया । उसका दो दिन का छोटा स बच्चा था । ऊंटनी के मरने बाद वह बच्चा अकेला रह गया । बजरदंत को उस पर दया आ गई और उसे अभय दान देते हुए कहा की तुम बिना किसी डर के हमारे साथ रह सकते हो। तब से ऊंटनी का बच्चा उनके साथ आराम से रहने लगा । उन्होंने उसका नाम भोलू रखा ।वह धीरे धीरे बड़ा होने लगा|    एक दिन बजरदंत की भिड़ंत किसी मदमस्त हाथी के साथ हो गई । वह बहुत ताकतवर था । हाथी के साथ लड़ाई में शेर घायल हो गया और घायल होने से वह चलने फिरने में भी असमर्थ हो गया । अब वह शिकार कैसे करता । इस तरह बड़ी समस्या आ गई भूखे मरने की नौबत आ गई । टिटहरी का जोडा ( a moral story)   बजरदंत ने दोनों सेवकों से शिकार करके लाने को कहा । वह दोनों पूरे दिन जंगल में घूमते रहे पर कुछ हाथ नहीं लगा । छुटटन ने सोचा क्यों न भोलू का ही शिकार कर लिया जाए । पर उसमें एक समस्या थी कि शेर ने उसे अभय दान दिया हुआ था

टिटहरी का जोड़ा(a moral story in hindi)

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टिटहरी का जोड़ा टिटहरी का एक जोड़ा समुद्र के किनारे रहता था । एक दिन टिटहरी ने अपने पति से कहा की हमें किसी सुरक्षत जगह पर अपना बसेरा   बनाना होगा ताकि मैं जब अंडे दूँ तो वह सुरक्षत रहें । यह स्थान सुरक्षित नहीं है। इस पर टिटहरे ने कहा की तू चिंता मत कर यह जगह बिलकुल सुरक्षित है । तू निश्चिंत होकर अंडे दे । टिटहरी बोली कि – क्या तुम्हें पता नहीं है कि जब समुद्र में ज्वार आता है तो वह सब कुछ बहा कर ले जाता है । तो अपने अंडों को क्या छोड़ेगा ? टिटहरा बोल – तू चिंता मत कर समुद्र में इतनी हिम्मत कहाँ कि वह हमारे अंडों को नुकसान पहुंचाए ,तू बेफिक्र होकर अंडे दे। समुद्र ने उन दोनों की बातें सुन ली और सोचने लगा की अच्छा इस टिटहरे में इतना घमंड अब तो इसका यह अभिमान तोड़ना ही पड़ेगा । जैसे ही टिटहरी ने अंडे दिए उसके दूसरे ही दिन समुद्र अपने ज्वार में उन अंडों को बहा ले गया । टिटहरी ने जब ये देखा तो वो जोर जोर सर रोने लगी । और खाने लगी कि अरे   मूर्ख टिटहरे तेरी वजह से समुद्र मेरे अंडों को बहा कर ले गया। मैने पहले ही कहा था कि दूसरी सुरक्षित जगह देख लेते हैं पर तूने अभिमान वश मेरी बात नही

सोचो फिर करो(moral story)

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    सोचो फिर करो किसी जंगल मे अग्निमुखम नाम का एक शेर रहता था । उसकी एक मंत्री परिषद व अनेक नौकर चाकर थे । जैसे कि चीता । कौआ , सियार , भेड़िया। लोमड़ी ,आदि। एक दिन एक ऊँट कही से घूमता हुआ उस जंगल में आ गया । शेर ने एसा जानवर कभी नहीं देखा था ।  उसने अपने मंत्री सियार से पूछा कि   इतना लंबा । ऊँचा सा ये जानवर कौन  है?और अगर तुम्हें नहीं पता तो उससे  जाकर उसका परिचय पूछो। सियार ऊँट  के पास गया और उससे पूछा- कि भाई  तुम कौन हो और कहाँ से आए हो?   ऊँट बोला -भोलू है मैं एक ऊँट हूँ और घूमता हुआ इधर आ गया हूँ । अग्निमुख भी उसकी यह बात सुन रहा था । उसे ऊँट बहुत पसंद आया । शेर बोल की भोलू जी तुम यहाँ आए हो तो अब तुम हमारे मेहमान हुए अतः कुछ दिन हमारा आतिथ्य स्वीकार करो। और कुछ दिन यहाँ आनंद से रहो । टिटहरी का जोडा (a moral story ) पहले तो ऊँट ने सोचा फिर उसने शेर का आतिथ्य स्वीकार कर लिया । एवं मजे से उनके पास रहने लगा । कुछ दिन बाद अग्निमुख की एक बड़े से हाथी के साथ झड़प हो गई । जिसमे शेर घायल हो गया । घायल होने से वह शिकार करने लायक नहीं रहा । एक दो दिन तो इसे ही निकल गए किन्तु अब वह

कुसंगति का फल

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  बुरी संगति का फल किसी समय की बात है एक बहुत बड़ा राज्य था । उसमें सुबाहु नाम का राजा राज्य करता था । वह अपने राज्य की प्रजा की बड़ी भलाई करता था । तथा प्रजा भी उससे बहुत ही खुश थी । वह राज्य बहुत ही स्वच्छ व सुंदर था । राजा भी इस बात का बहुत खयाल रखता था की राज्य में किसी प्रकार की गंदगी ना हो जिससे मक्खी, मच्छर , बीमारियाँ आदि न हो। राजा एक बड़े से महल में रहता था । उसका महल भी नगर की तरह ही बहुत सुंदर ,साफ ,स्वच्छ रहता था। महल के उत्तरी दिशा मे राजा का शयन कक्ष था । जिसकी खिड़की से राज्य का सम्पूर्ण नजारा दिखता था । राजा को अपना शयन कक्ष बहुत आधी प्रिय था । प्रतिदिन रात को वह वहाँ सोता था । उस शयन कक्ष के अंदर राजा के पलंग पर चादर के अंदर छुप कर एक विसर्पणी जूँ रहती थी । वह करती क्या थी की वैसे तो जूँ चादर में छुपी रहती और जब राजा पलंग पर आकर सो जाता तो उसके गहरी नींद मे सोने का इंतजार करती और जब राजा गहरी नींद में सो जाता तब वह चादर में से बाहर निकलती। और बाहर निकाल कर आराम से राजा को खून चूसती । और अपना पेट भरती । उसे राजा का मीठा मीठा खून बहुत ज्यादा पसंद था । जूँ की यही दिन

केंकडे की चतुराई(moral story)

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केंकड़े की चतुराई   एक बहुत बड़ा तालाब था। उस तालाब में बहुत से जीव जन्तु रहते थे जैसे मछली ,मेंढक ,कछुआ , केकड़ा  आदि। वही उस  तालाब के पास एक बगुला रहता था ।  वह काफी बूढ़ा हो चुका था । और शिकार करने जितनी ताकत उसमे नहीं बची थी। उसका नाम भगत बगुला था । एक दिन केको केकड़ा उसके पास से गुजर रहा था। केको ने भगत बगुले को उदास बैठा देख कर पूछा कि - चाचा आप इस तरह यहाँ पर गुमसुम और  उदास क्यों बैठे हैं ?क्या बात कुछ परेशानी है क्या? इस पर भगत बोला- नहीं भाई कोई परेशानी नहीं है। मैने तो अब सन्यास ले लिया है और अब मैंने शिकार करना भी छोड़ दिया है बस दिनभर भगवान का भजन करता हूँ ।पर एक चिंता मुझे मन ही मन सता रही है। कुसंगति का फल a moral story in hindi केको ने पूछा- किस बात की चिंता चाचा ? इस पर भगत बगुला बोला -मुझे मेरी नहीं इन तालाब के मेरे साथियों की चिंता है , जिनके साथ मैंने अपना बचपन, जवानी ,और अब बुढ़ापा यानि पूरा ही जीवन बिताया है। और अब इन साथियों के प्राण खतरे में है। प्राण खतरे में हैं ? वो कैसे ? केको ने बड़े आश्चर्य से पूछा । ngade ki pool keise khuli - ek moral story   भगत बोला  – धरती